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"शरीर से ज्यादा / भगवत रावत" के अवतरणों में अंतर

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शरीर से ज़्यादा

वह एक आकृति थी

उसे छूना

कुछ रेखाओं को अनुभव करना होता

उँगलियों के पोरों पर


छूते ही

वह हिल उठती

और जाते ही

जैसे कोई

निकलकर...चला...जाता दूर...।