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तेरी कुदरत तो है वो, जिसकी न हद है न हिसाब ।
तू जो चाहे तो उठे सीना-सहरा से हुबाब<ref>बुलबुला </ref> ।
बाम-ए-अगियार है, रुसवाई है, नादारी है ।