भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जेठ आया / रविशंकर पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविशंकर पाण्डेय |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> जेठ आया सिम…) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रविशंकर पाण्डेय | |रचनाकार=रविशंकर पाण्डेय | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=अंधड़ में दूब / रविशंकर पाण्डेय |
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} |
17:59, 10 जून 2011 के समय का अवतरण
जेठ आया
सिमट कर सकुचा गयी
फिर गाँव की लहुरी नदी!
बिदा लेती धूप
टमलतासों के सुरों पर
यमन का बजना
दिन ढले अमराइयों में
थके चिट्ठी रसों के
घर गाँव का बसना,
गर्मियों के दिन
ज्यों तुम्हारे बिन
रेत का विस्तार ओढ़े
जी रहे पूरी सदी!
शाम होते
एक पनघट भाभियों के
घूँघटों की ओट
टिकुली का कसकना,
रात धिरते ही
प्रवासी स्वप्न में
गीत गोविन्दम
तुम्हारी देह का बसना,
भूल कुछ ऐसी कि
जब भी शाम गुजरी
खुली सुधियों की तुम्हारी कौमुदी
चँाद उगते
एक अँजुरी नर्म चेहरा
ज्यों पिघलकर
धमनियों की नदी में धुलना,
रात की हर बात में महका किया
आदतन ही
एक बेणीबंध खुलना
चांदनी जब जब मुंडेर पर झरी,
गंघ डूबी बही बाहों की नदी!