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+ | अनीता मलिक . |
13:34, 11 जून 2011 का अवतरण
कही कोई तो रास्ता कही जो जाता होगा
माना मंजिल पता नहीं कही आइना होगा
युही नहीं थी उसके चहरे पे उदाशी इतनी
जरुर वो कही किसी हादशे से गुजरा होगा
गमो का बोझ उठाये तपती रेत पे चलना
...तुम्ही कहो इससे बड़ा क्या होसला होगा
यक़ीनन में बखुदी में भी पहचान लूँगा तुझे
जब कभी कही मेरा तुझसे सामना होगा
में जेसा भी हू बेअदब बेतमीज ठीक हू
ऊपर वाला मेरा हिसाब भी रखता होगा
माना मंजिल पता नहीं कही आइना होगा
अनीता मलिक .
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