भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"`गली' क्षणिकाएँ/रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> १- अपने घर की गली में खेलते हुए…)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:30, 13 जून 2011 के समय का अवतरण


१- अपने घर की गली में
खेलते हुए हमारा बचपन
सुरक्षित तो था,
लेकिन आज वह गली भी
अपरिचित,दहशतभरी सी लगती है
कौन जाने? कब किसी की
लाश मिल जाए?

२- कभी अँधेरी गलियों से,
गुजरते हुए भय नहीं लगता था
किन्तु आज
रोशनी से नहाई
सड़कों से गुजरने में भी,
दहशत होती है।

३- एक समय था,जब
घर,खेत, पनघट
और गली में,
बनिताएँ सुरक्षित तो थीं,
किन्तु आज?
घर की पक्की चारदीवारी में भी
वे सुरक्षित कहाँ हैं?