भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो नहीं मेरा मगर / दीप्ति मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (वो नहीं मेरा मगर / दीप्ति नवल का नाम बदलकर वो नहीं मेरा मगर / दीप्ति मिश्र कर दिया गया है)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=दीप्ति नवल
+
|रचनाकार=दीप्ति मिश्र
|संग्रह=है तो है / दीप्ति नवल
+
|संग्रह=है तो है / दीप्ति मिश्र
 
}}
 
}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
 
वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
 
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बग़ावत है तो है  
 
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बग़ावत है तो है  

08:42, 14 जून 2011 के समय का अवतरण

वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बग़ावत है तो है

सच को मैंने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है

कब कहा मैंने कि वो मिल जाये मुझको, मैं उसे
गर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या ख़ता
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है
 
दोस्त बन कर दुश्मनों- सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में क़ुर्बत<ref>सामीप्य</ref> है तो है

शब्दार्थ
<references/>