भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो नहीं मेरा मगर / दीप्ति मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति नवल |संग्रह=साये में धूप / दीप्ति नवल }} <poem>...)
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=दीप्ति नवल
+
|रचनाकार=दीप्ति मिश्र
|संग्रह=साये में धूप / दीप्ति नवल
+
|संग्रह=है तो है / दीप्ति मिश्र
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
 
वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बगावत है तो है  
+
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बग़ावत है तो है  
सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
+
 
 +
सच को मैंने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
 
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है  
 
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है  
कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे  
+
 
 +
कब कहा मैंने कि वो मिल जाये मुझको, मैं उसे  
 
गर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है  
 
गर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है  
जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता
+
 
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है  
+
जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या ख़ता
दोस्त बन कर दुष्मनों सा वो सताता है मुझे
+
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है
फ़िर भी उस जालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
+
 +
दोस्त बन कर दुश्मनों- सा वो सताता है मुझे
 +
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
 +
 
 
दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ  
 
दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ  
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है
+
दूरियों के बाद भी दोनों में क़ुर्बत<ref>सामीप्य</ref> है तो है
 +
 
 +
 
 +
</poem>
 +
{{KKMeaning}}

08:42, 14 जून 2011 के समय का अवतरण

वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बग़ावत है तो है

सच को मैंने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है

कब कहा मैंने कि वो मिल जाये मुझको, मैं उसे
गर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या ख़ता
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है
 
दोस्त बन कर दुश्मनों- सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में क़ुर्बत<ref>सामीप्य</ref> है तो है

शब्दार्थ
<references/>