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शिकवा / इक़बाल

No change in size, 23:38, 21 जून 2011
क्यूँ ज़ियाकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फर्दाफ़र्दा<ref>कल की चिन्ता</ref> न करूँ, महव<ref>खोया रहना</ref>-ए-ग़म-ए-दोश रहूँनाले बुलबुल की सुनूँ और हमा -तन -गोश<ref>चुपचाप सुनना </ref> रहूँ
हमनवा<ref> साथी</ref> मैं भी कोई गुल हूँ के ख़ामोश रहूँ ।
हम वही शोख़ सा दामां, तुझे याद नहीं ?
वादी ए नज़्द नज्द में वो शोर-ए-सलासिल <ref>जंज़ीर </ref> न रहा ।
क़ैस दीवाना-ए-नज्जारा-ए-महमिल न रहा ।
हौसले वो न रहे, हम न रहे, दिल न रहा ।
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