भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोई छेड़े हमें किसलिए! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:20, 26 जून 2011 का अवतरण
कोई छेड़े हमें किसलिए!
हम तो मरने की धुन में जिए
पाँव धीरे से रखना हवा
फूल सोये हैं करवट लिए
सूरतें एक से एक थीं
हम तो उनको ही देखा किये
अब ये प्याला भी छलका तो क्या
उम्र कट ही गयी बेपिये
और भी लाल होंगे गुलाब
उसने होठों से हैं छू लिए