भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop]) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन | |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> |
01:43, 28 जून 2011 का अवतरण
सीधी है भाषा बसन्त की
कभी आँख ने समझी
कभी कान ने पाई
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आई
और है कहानी दिगन्त की
नीले आकाश में
नई ज्योति छा गई
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गई
एक लहर फैली अनन्त की ।