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"अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले / पद्माकर" के अवतरणों में अंतर

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अधखुले बैष नख रेखन के झलकैं ।
 
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कहैं पदमाकर नवीन अध नीबी खुली ,
 
कहैं पदमाकर नवीन अध नीबी खुली ,

21:51, 28 जून 2011 के समय का अवतरण


अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले ,
अधखुले बैष नख रेखन के झलकैं ।
कहैं पदमाकर नवीन अध नीबी खुली ,
अधखुले छहरि छराके छोर छलकैँ ।
भोर जग प्यारी अध ऊरध इतै की ओर ,
भायी झिकि झिरकि उघारि अध पलकैं ।
आँखै अधखुलीँ अधखुली खिरकी है खुली ,
अधखुले आनन पै अधखुली अलकैँ ।

पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।