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"आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज | आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज | ||
− | + | ज़िन्दगी, शीशा तेरा फूटा हुआ लगता है आज | |
− | हर नज़र खामोश है, हर घर से उठता है | + | हर नज़र खामोश है, हर घर से उठता है धुआँ |
यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज | यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज | ||
− | तुझसे आती है किसी जूड़े की | + | तुझसे आती है किसी जूड़े की ख़ुशबू तो गुलाब! |
हाथ से दामन मगर छूटा हुआ लगता है आज | हाथ से दामन मगर छूटा हुआ लगता है आज | ||
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00:13, 1 जुलाई 2011 का अवतरण
आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज
ज़िन्दगी, शीशा तेरा फूटा हुआ लगता है आज
हर नज़र खामोश है, हर घर से उठता है धुआँ
यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज
तुझसे आती है किसी जूड़े की ख़ुशबू तो गुलाब!
हाथ से दामन मगर छूटा हुआ लगता है आज