भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज
हर नज़र खामोश है, हर घर से उठता है धुँआधुआँ
यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज
तुझसे आती है किसी जूड़े की खुशबू ख़ुशबू तो गुलाब!
हाथ से दामन मगर छूटा हुआ लगता है आज
<poem>