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"एक बिजली-सी घटाओं से निकलती देखी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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होश इतना था किसे उठके जो प्याला लेता! | होश इतना था किसे उठके जो प्याला लेता! |
00:28, 1 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
एक बिजली-सी घटाओं से निकलती देखी
प्यार की लौ तेरी आँखों में मचलती देखी
कोई आया था लटें खोले हुए पिछली रात
आख़िरी वक़्त ये तक़दीर बदलती देखी
देखिये, हमको कहाँ राह लिए जाती है
अब तो मंज़िल भी यहाँ साथ ही चलती देखी
होश इतना था किसे उठके जो प्याला लेता!
हमने क़दमों पे तेरे रात निकलती देखी
नाज़ुकी इसकी उठाती नहीं शब्दों का बोझ
प्यार की बात इशारों में ही चलती देखी
लाख तू उनकी निगाहों में समाया है, गुलाब!
पर न हमने तेरी तक़दीर बदलती देखी