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"किसी बेरहम के सताये हुए हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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00:49, 1 जुलाई 2011 का अवतरण
किसी बेरहम के सताए हुए हैं
बड़ी चोट सीने पे खाए हुए हैं
हरेक रंग में उनको देखा है हमने
उन्हींके जलाए-बुझाए हुए हैं
कोई तो किरण एक आशा की फूटे
अँधेरे बहुत सर उठाये हुए हैं
जहां चाँद, सूरज है, तारें हैं लाखों
दिया एक हम भी जलाए हुए हैं
गुलाब उनके चरणों में पहुँचे तो कैसे!
सभी ओर काँटें बिछाए हुए हैं