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"तलब ग़म की खुशी से बढ़ गयी है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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गुलाब! ऐसे भी क्या कम थी ये दुनिया! | गुलाब! ऐसे भी क्या कम थी ये दुनिया! | ||
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01:16, 1 जुलाई 2011 का अवतरण
तलब ग़म की ख़ुशी से बढ़ गयी है
ये चाहत ज़िन्दगी से बढ़ गयी है
कोई आयेगा शायद आज की रात
तड़प कुछ शाम ही से बढ़ गयी है
ये क्या कम है, तेरी चर्चा शहर में
मेरी दीवानगी से बढ़ गयी है!
तेरे जाने से क्या बीतेगी मुझ पर
जो बेचैनी अभी से बढ़ गयी है!
गुलाब! ऐसे भी क्या कम थी ये दुनिया!
मगर रौनक़ तुम्हीं से बढ़ गयी है