भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ये हसीं बेकली क्यों सीने में भर गयी है! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
  
ये हसीं बेकली क्यों सीने में भर गयी है!
+
ये हसीन बेकली क्यों सीने में भर गयी है!
 
मेरे दिल के पास आकर वो नज़र ठहर गयी है!
 
मेरे दिल के पास आकर वो नज़र ठहर गयी है!
  
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
  
 
वे लटें थीं रात किसकी मेरे बाजुओं पे बिखरीं
 
वे लटें थीं रात किसकी मेरे बाजुओं पे बिखरीं
मेरे हर ख्याल में एक खुशबू-सी भर गयी है
+
मेरे हर ख़याल में एक ख़ुशबू-सी भर गयी है
  
मुझे हंस के अब बिदा दो, मेरी ज़िन्दगी का गम क्या!
+
मुझे हँस के अब बिदा दो, मेरी ज़िन्दगी का ग़म क्या!
 
ये समझ लो आज दुलहन साजन के घर गयी है
 
ये समझ लो आज दुलहन साजन के घर गयी है
  
नहीं अब, गुलाब! तुझमें पहले-सी शोखियाँ हों  
+
नहीं अब, गुलाब! तुझमें पहले-सी शोख़ियाँ हों  
तेरी तड़पनों से कुछ तो दुनिया संवर गयी है  
+
तेरी तड़पनों से कुछ तो दुनिया सँवर गयी है  
 
<poem>
 
<poem>

01:59, 1 जुलाई 2011 का अवतरण


ये हसीन बेकली क्यों सीने में भर गयी है!
मेरे दिल के पास आकर वो नज़र ठहर गयी है!

मेरे प्यार की वज़ह से ये हुई है रंगसाजी
मेरी हर नज़र से तेरी रंगत निखर गयी है

वे लटें थीं रात किसकी मेरे बाजुओं पे बिखरीं
मेरे हर ख़याल में एक ख़ुशबू-सी भर गयी है

मुझे हँस के अब बिदा दो, मेरी ज़िन्दगी का ग़म क्या!
ये समझ लो आज दुलहन साजन के घर गयी है

नहीं अब, गुलाब! तुझमें पहले-सी शोख़ियाँ हों
तेरी तड़पनों से कुछ तो दुनिया सँवर गयी है