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"उनका बदला हुआ हर तौर नज़र आता है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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अक्स हम उनका उतारा किये हैं कागज़ पर | अक्स हम उनका उतारा किये हैं कागज़ पर | ||
− | कीजिये जब भी ज़रा | + | कीजिये जब भी ज़रा ग़ौर, नज़र आता है |
इस बयाबान के आगे भी शहर है,ऐ दोस्त! | इस बयाबान के आगे भी शहर है,ऐ दोस्त! | ||
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है | और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है | ||
− | कोई कोयल न तुझे | + | कोई कोयल न तुझे ढूँढ़ती फिरती हो, गुलाब! |
आज आमों पे नया बौर नज़र आता है | आज आमों पे नया बौर नज़र आता है | ||
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00:26, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
उनका बदला हुआ हर तौर नज़र आता है
अब न पहले का वही दौर नज़र आता है
यों न झुकती थीं हमें देखके नज़र उनकी
आज नज़रों में कोई और नज़र आता है
अक्स हम उनका उतारा किये हैं कागज़ पर
कीजिये जब भी ज़रा ग़ौर, नज़र आता है
इस बयाबान के आगे भी शहर है,ऐ दोस्त!
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है
कोई कोयल न तुझे ढूँढ़ती फिरती हो, गुलाब!
आज आमों पे नया बौर नज़र आता है