भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उनका बदला हुआ हर तौर नज़र आता है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
आज नज़रों में कोई और नज़र आता है | आज नज़रों में कोई और नज़र आता है | ||
− | अक्स हम उनका उतारा किये हैं | + | अक्स हम उनका उतारा किये हैं काग़ज़ पर |
कीजिये जब भी ज़रा ग़ौर, नज़र आता है | कीजिये जब भी ज़रा ग़ौर, नज़र आता है | ||
00:29, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
उनका बदला हुआ हर तौर नज़र आता है
अब न पहले का वही दौर नज़र आता है
यों न झुकती थीं हमें देखके नज़र उनकी
आज नज़रों में कोई और नज़र आता है
अक्स हम उनका उतारा किये हैं काग़ज़ पर
कीजिये जब भी ज़रा ग़ौर, नज़र आता है
इस बयाबान के आगे भी शहर है,ऐ दोस्त!
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है
कोई कोयल न तुझे ढूँढ़ती फिरती हो, गुलाब!
आज आमों पे नया बौर नज़र आता है