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"कोई ऊँची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | कोई | + | कोई ऊँची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं! |
− | + | झुकके आँचल में उसने समेटा हमें, ज्यों ही तूफ़ान ने सर उभारा नहीं | |
उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे,दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी | उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे,दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी | ||
जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं | जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं | ||
− | वार दुनिया के हँस- | + | वार दुनिया के हँस-हँसके झेला किया, हमने दुश्मन न समझा किसी को कभी |
− | जिनको अपना समझते थे दिल में मगर, | + | जिनको अपना समझते थे दिल में मगर, बेरुख़ी आज उनकी गवारा नहीं |
− | हो न | + | हो न मंज़िल का कोई पता भी तो क्या! छोड़कर कारवाँ बढ़ गया भी तो क्या! |
राह वीरान, दिन ढल रहा भी तो क्या! चलनेवाला अभी दिल में हारा नहीं | राह वीरान, दिन ढल रहा भी तो क्या! चलनेवाला अभी दिल में हारा नहीं | ||
तू खिला इस तरह जो रहेगा, गुलाब! प्यार भी उनकी आँखों में आ जायगा | तू खिला इस तरह जो रहेगा, गुलाब! प्यार भी उनकी आँखों में आ जायगा | ||
− | तेरी | + | तेरी ख़ुशबू तो उन तक पहुँच ही गयी, रुक के जूड़ा भले ही सँवारा नहीं |
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01:38, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
कोई ऊँची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं!
झुकके आँचल में उसने समेटा हमें, ज्यों ही तूफ़ान ने सर उभारा नहीं
उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे,दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी
जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं
वार दुनिया के हँस-हँसके झेला किया, हमने दुश्मन न समझा किसी को कभी
जिनको अपना समझते थे दिल में मगर, बेरुख़ी आज उनकी गवारा नहीं
हो न मंज़िल का कोई पता भी तो क्या! छोड़कर कारवाँ बढ़ गया भी तो क्या!
राह वीरान, दिन ढल रहा भी तो क्या! चलनेवाला अभी दिल में हारा नहीं
तू खिला इस तरह जो रहेगा, गुलाब! प्यार भी उनकी आँखों में आ जायगा
तेरी ख़ुशबू तो उन तक पहुँच ही गयी, रुक के जूड़ा भले ही सँवारा नहीं