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"फिर उन्हीं आँखों की खुशबू में नहाने के लिये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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फिर उन्हीं आँखोंकी खुशबू में नहाने के लिये
 
आ गए हम दिल पे फिर एक चोट खाने के लिये
 
 
लो कसम, मुँह से अगर हमने लगाई हो शराब
 
यह बहाना था गले तुमको लगाने के लिये
 
 
यह तो अच्छा है कि बिस्तर लग गया है बाग़ में
 
हम कहाँ ये फूल पाते घर सजाने के लिये!
 
 
आग जो दिल में फतिंगे के, वही दीपक में है
 
यह है जलने के लिये, वह है जलाने के लिये
 
 
जिन्दगी की हाट में वे रंग बिकते हैं गुलाब
 
जिनको लाया था कभी तू उस अजाने के लिये
 
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02:25, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण