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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
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इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था
हवा में घुँघरू से बज उठे थे, दिशाएँ करवट बदल रही थीं
किरण के घूँघट में मुंह मुँह छिपाकर तुम आ रहे थे, पता नहीं था
दिया हर उम्मीद का बुझाकर, सुला लिया अपना दिल तो हमने
सभी को मिट्टी के ये घरौंदे लुभा रहे थे, पता नहीं था
कहाँ हैं रंगों की शोखियाँ शोख़ियाँ वे, कहाँ हैं अब वे बहार के दिन!
गुलाब! तुम बाग़ भर में बस एक हवा रहे थे, पता नहीं था
<poem>
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