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− | + | भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआ | |
− | + | जब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं है | |
+ | तो मेरा पीछा छोड़ो | ||
+ | क्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती हो | ||
− | + | आना हो तो आओ पूरी तरह से | |
− | + | नहीं तो वहीं रहो मजे में | |
+ | यह क्या बात हुई | ||
+ | कि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहो | ||
+ | कि मम्मी के पास ही रहना है मुझे | ||
+ | और रातों में चुपचाप चली आओ यहाँ | ||
+ | और फिर यह तो भई हद है | ||
+ | जानबूझ कर दुःखी करने की बात है | ||
+ | कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ | ||
+ | स्मृतियां और संभावनाओं के बियाबानों में | ||
+ | और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम | ||
+ | बिना कुछ कहे सुने | ||
− | + | पापा को इस तरह नहीं सताते, बेटे | |
− | + | अब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने की | |
− | + | उनकी हिम्मत नहीं है । | |
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21:15, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक : सपने में (रचनाकार: डॉ० रणजीत)
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भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआ जब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं है तो मेरा पीछा छोड़ो क्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती हो आना हो तो आओ पूरी तरह से नहीं तो वहीं रहो मजे में यह क्या बात हुई कि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहो कि मम्मी के पास ही रहना है मुझे और रातों में चुपचाप चली आओ यहाँ और फिर यह तो भई हद है जानबूझ कर दुःखी करने की बात है कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ स्मृतियां और संभावनाओं के बियाबानों में और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम बिना कुछ कहे सुने पापा को इस तरह नहीं सताते, बेटे अब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने की उनकी हिम्मत नहीं है ।