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"वे किसान की नयी बहू की आँखें / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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03:55, 4 जुलाई 2011 का अवतरण
नहीं जानती जो अपने को खिली हुई--
विश्व-विभव से मिली हुई,--
नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को,--
नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,
वे किसान की नयी बहू की आँखें
ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पाँखें;
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
भीरु पकड़ जाने को हैं दुनियाँ के कर से--
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से।