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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
 
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : सपने में ('''रचनाकार:''' [[रणजीत]])</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : अदावत दिल में रखते हैं ('''रचनाकार:''' [[वीरेन्द्र खरे 'अकेला' ]])</div>
 
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भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआ
+
अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं
जब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं है
+
न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते हैं
तो मेरा पीछा छोड़ो
+
क्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती हो
+
  
आना हो तो आओ पूरी तरह से
+
यक़ीनन उनका जी भरने लगा है मेज़बानी से
नहीं तो वहीं रहो मजे में
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वो कुछ दिन से हमें जाती हुई लारी दिखाते हैं
यह क्या बात हुई
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कि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहो
+
कि मम्मी के पास ही रहना है मुझे
+
और रातों में चुपचाप चली आओ यहाँ
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और फिर यह तो भई हद है
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जानबूझ कर दुःखी करने की बात है
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कि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथ
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स्मृतियों और संभावनाओं के बियाबानों में
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और सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुम
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बिना कुछ कहे सुने
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पापा को इस तरह नहीं सताते, बेटे
+
उलझना है हमें बंजर ज़मीनों की हक़ीक़त से
अब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने की
+
उन्हें क्या, वो तो बस काग़ज़ पे फुलवारी दिखाते हैं
उनकी हिम्मत नहीं है । 
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मदद करने से पहले तुम हक़ीक़त भी परख लेना
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यहाँ पर आदतन कुछ लोग लाचारी दिखाते हैं
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डराना चाहते हैं वो हमें भी धमकियाँ देकर
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बड़े नादान हैं पानी को चिन्गारी दिखाते हैं
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दरख़्तों की हिफ़ाज़त करने वालो डर नहीं जाना
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दिखाने दो, अगर कुछ सरफिरे आरी दिखाते हैं
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हिमाक़त क़ाबिले-तारीफ़ है उनकी ‘अकेला’जी
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हमीं से काम है हमको ही रंगदारी दिखाते हैं
 
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22:30, 5 जुलाई 2011 का अवतरण

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सप्ताह की कविता
शीर्षक : अदावत दिल में रखते हैं (रचनाकार: वीरेन्द्र खरे 'अकेला' )
अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं
न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते हैं

यक़ीनन उनका जी भरने लगा है मेज़बानी से
वो कुछ दिन से हमें जाती हुई लारी दिखाते हैं

उलझना है हमें बंजर ज़मीनों की हक़ीक़त से
उन्हें क्या, वो तो बस काग़ज़ पे फुलवारी दिखाते हैं

मदद करने से पहले तुम हक़ीक़त भी परख लेना
यहाँ पर आदतन कुछ लोग लाचारी दिखाते हैं

डराना चाहते हैं वो हमें भी धमकियाँ देकर
बड़े नादान हैं पानी को चिन्गारी दिखाते हैं

दरख़्तों की हिफ़ाज़त करने वालो डर नहीं जाना
दिखाने दो, अगर कुछ सरफिरे आरी दिखाते हैं

हिमाक़त क़ाबिले-तारीफ़ है उनकी ‘अकेला’जी
हमीं से काम है हमको ही रंगदारी दिखाते हैं