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"रोटी कब तक पेट बाँचती / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
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22:35, 6 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
रोटी कब तक पेट बाँचती?
सत्ता के संकेत कुटिल हैं
ध्वनियों का संसार विकट
विपदा ने घर देख लिए हैं
नींवों पर आपद आई
वंशी रोते-रोते सोई
पुस्तक लगे हथौड़ों-सी
उलझन के तख़्तों पर जैसे
पढ़े पहाड़े - कील ठुँकें,
दरवाजे बड़-बड़ करते हैं
सीढ़ी धड़-धड़ बजती है
रोटी अभी सवारी पर चढ़
धरती अंबर घूमेगी
दुविधाओं के हाथों में बल नहीं बचा
सुविधाएँ मनुहार-मनौवत भिजवाएँ।
रोटी कब तक पेट बाँचती?