भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पेड़-1 / अदोनिस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
भूखे शख़्स की आख़िरी क़िताब पढ़ते हुए । | भूखे शख़्स की आख़िरी क़िताब पढ़ते हुए । | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | |||
+ | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल''' |
11:12, 8 जुलाई 2011 का अवतरण
|
उसे नहीं पता कि कैसे सँवारा जाए तलवारों को
क्षत-विक्षत अंगों से ।
उसे नहीं पता कि कैसे बनाया जाए
अपने दाँतों को चमकता-दमकता ।
वे खोपड़ियों और ख़ून की नदी से आए हैं उसके पीछे
और फाँद चुके हैं नीची दीवार
और वह दरवाज़े के पीछे है
(वह सपना देखता है कि दरवाज़े के पीछे वह अभी बच्चा ही है)
भूखे शख़्स की आख़िरी क़िताब पढ़ते हुए ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल