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"गांठ / एम० के० मधु" के अवतरणों में अंतर

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जब उनके रौशनदान का पट जाम हो जाता है
 
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और जब उनके हाथों की सूई में
 
और जब उनके हाथों की सूई में
धगा नहीं घुस पाता है
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धागा नहीं घुस पाता है
  
 
प्रथम पहर से अन्त पहर तक
 
प्रथम पहर से अन्त पहर तक

21:33, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

मेरी आंखें
मेरे हाथ
मेरी उंगलियां
तथा मेरे नाखून
इतने तेज़
तथा सलीकेदार हैं
कि मुहल्ले, समाज
रिश्तेदार सभी
इनके मुरीद हैं

गाहे ब गाहे वे
याद कर लेते हैं इन्हें
जब उनके घर की कुंडियां नहीं खुलती हैं
जब उनकी रस्सियों की गांठ नहीं सुलझती है
जब उनके रौशनदान का पट जाम हो जाता है
और जब उनके हाथों की सूई में
धागा नहीं घुस पाता है

प्रथम पहर से अन्त पहर तक
कस्बे से कार्यालय तक
मुझे याद किया जाता रहा है
खोलने के लिए कुंडियां
सुलझाने के लिए गांठ
और सूई में डालने के लिए धागे
एक विशेषज्ञ के रूप में
किंतु आज मैं दौड़ रहा हूं
एक कोने से दूसरे कोने
एक चौराहे से दूसरे चौराहे
बेचैनी से ढूंढ रहा हूं-
एक विशेषज्ञ
अपने लिए

क्योंकि लग गई है गांठ
अनजाने में
मेरे अपने ही आंगन की अलगनी पर
खोले नहीं खुलती है
खोलने की जद्दोजहद में
और उलझ जाती है
जिससे मुक्ति के लिए
फरफराते हैं
मेरे घर की अर्द्धमृत आत्माओं के
अर्द्धजीवित वस्त्र
जो कई पहरों से
अलगनी से
उल्टे लटके हुए थे
अपने बचे हुए पानी के निचुड़ जाने के लिए

गांठ अपने वजूद पर कायम है
जिसकी बगल से
अपने पंख बचा कर
निकल जाती हैं
हंसती खिलखिलाती
जीवन से भरी कुछ तितलियां।