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"प्यार की राह में रोने से तो बाज़ आये हम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | पर ये मुमकिन नहीं | + | पर ये मुमकिन नहीं आँखें भी न भर लायें हम |
बाग़ में चारों तरफ मौत का सन्नाटा है | बाग़ में चारों तरफ मौत का सन्नाटा है |
00:47, 9 जुलाई 2011 का अवतरण
प्यार की राह में रोने से तो बाज़ आयें हम
पर ये मुमकिन नहीं आँखें भी न भर लायें हम
बाग़ में चारों तरफ मौत का सन्नाटा है
गंध पहले-सी गुलाबों की कहाँ पायें हम!
और होंगे तेरी महफ़िल में तड़पनेवाले
तू निगाहें भी फिरा ले तो चले जायें हम
इस सफ़र की कोई मंज़िल तो नहीं है, लेकिन
यह तो बतला कि कहाँ राह में सुस्तायें हम
आज की रात तो हर रंग में खिलते हैं गुलाब
फ़िक्र कल की किसे, आयें कि नहीं आयें हम