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"फिर मुझे नरगिसी आँखों की महक पाने दो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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आज की रात तो आँखों में गुज़र जाने दो | आज की रात तो आँखों में गुज़र जाने दो | ||
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क्या हुआ मिल गयीं नज़रें भी जो अनजाने दो! | क्या हुआ मिल गयीं नज़रें भी जो अनजाने दो! | ||
00:55, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
फिर मुझे नरगिसी आँखों की महक पाने दो
फिर बुलाते हैं छलकते हुए पैमाने दो
क्या पता, फिर कभी हम मिल भी सकेंगे कि नहीं
आज की रात तो आँखों में गुज़र जाने दो
और भी हैं कई मजबूरियाँ, सँभल ऐ दिल!
क्या हुआ मिल गयीं नज़रें भी जो अनजाने दो!
जब्त होता नहीं माँझी अब उठा लो लंगर
नाव को फिर किसी तूफ़ान से टकराने दो
रंग उनका भी बदलता नज़र आयेगा, गुलाब!
थोड़ा इन प्यार की आहों में असर आने दो