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"बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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काम अपना है उनको पहुँचाना | काम अपना है उनको पहुँचाना |
00:58, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं
हम मुसाफ़िर सराय आम के हैं
काम अपना है उनको पहुँचाना
ख़त सभी दूसरों के नाम के हैं
है ये किस शोख़ की गली, यारो!
लोग चलते कलेजा थाम के हैं
जब हमें लौटना नहीं है यहाँ
फिर ये वादे तेरे किस काम के हैं
उनके आने से आ गयी है बहार
वरना हम तो गुलाब नाम के हैं