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"जी से हटती ही नहीं याद किसी की गुमनाम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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दूर इस राह में ऐसा भी कोई होगा मुकाम | दूर इस राह में ऐसा भी कोई होगा मुकाम | ||
01:52, 9 जुलाई 2011 का अवतरण
जी से हटती ही नहीं याद किसीकी गुमनाम
जैसे बीमार के आँगन में बरसती हुई शाम
तू जो परदा न हटाये तो ये किसका है क़सूर!
हमने यह रात लिखा दी है तेरे प्यार के नाम
फिर से बिछुड़े हुए राही जहाँ मिल जायँ कभी
दूर इस राह में ऐसा भी कोई होगा मुकाम
उनसे कहने की तो बातें थी हज़ारों ही, मगर
मुँह भी हम खोल न पाए कि हुई उम्र तमाम
हमने माना बड़ी नाज़ुक है क़लम तेरी गुलाब!
पंखड़ी भी कभी कर देती है तलवार का काम