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"मेरा ठिकाना क्या पूछो हो (कविता) / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर
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09:34, 6 जुलाई 2007 का अवतरण
मेरा ठिकाना क्या पूछो हो
आब-ओ-दाना क्या पूछो हो
ख़ाली पड़े हैं सारे कमरे
साहिब-ए-ख़ाना क्या पूछो हो
ख़ैर-ख़बर का खेल ज़ुबानी
मिलना-मिलाना क्या पूछो हो
क्या पूछो हो उनका आना
उनका जाना क्या पूछो हो
सलिल अभी तक जाग रहा है
नींद का आना क्या पूछो हो
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आब-ओ-दाना=अन्न-जल; साहिब-ए-ख़ाना= घर का मालिक
(रचनाकाल : 1997-1998)