भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किसी का प्यार समझें, दिल्लगी समझें, अदा समझें / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
|
|
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | {{KKGlobal}}
| |
− | {{KKRachna
| |
− | |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
| |
− | |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
| |
− | }}
| |
− | [[category: ग़ज़ल]]
| |
− | <poem>
| |
| | | |
− | किसीका प्यार समझें, दिल्लगी समझें, अदा समझें
| |
− | बता दे तू ही अब, ऐ ज़िन्दगी! हम तुझको क्या समझें
| |
− |
| |
− | नहीं हटता है पल भर लाज का परदा उन आँखों से
| |
− | इशारों में ही दिल की बात हम कैसे भला समझें!
| |
− |
| |
− | हम अपने को भी उनकी धड़कनों में देख लेते हैं
| |
− | उन्हींके हम हैं, वे हमको भले ही दूसरा समझें
| |
− |
| |
− | दिया जो आपने आकर कभी दिल में जलाया था
| |
− | दिया वह आँधियों से लड़ते-लड़ते बुझ गया समझें
| |
− |
| |
− | गुलाब ऐसे तो हर तितली से आँखें चार करते हैं
| |
− | जो दिल की पंखड़ी छू ले उसीको दिलरुबा समझें
| |
− | <poem>
| |
02:28, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण