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"अब कहाँ चाँद-सितारे हैं नज़र के आगे! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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क्यों ये रह-रहके इशारे हैं नज़र के आगे!
 
क्यों ये रह-रहके इशारे हैं नज़र के आगे!
  
कभी खुशबू से ये दिल उनका भी छू लेंगे
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कभी ख़ुशबू से ये दिल उनका भी छू लेंगे
 
रंग तूने जो पसारे हैं नज़र के आगे
 
रंग तूने जो पसारे हैं नज़र के आगे
 
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02:26, 10 जुलाई 2011 का अवतरण


अब कहाँ चाँद-सितारे हैं नज़र के आगे!
बस उस तरफ के किनारे हैं नज़र के आगे

कोई कुछ भी ही कहे हमने तो यही देखा है
ख़्वाब ही ख़्वाब ये सारे हैं नज़र के आगे

तू भले ही है छिपा ताजमहल में अपने
तेरे पापोश तो, प्यारे! हैं नज़र के आगे

कौन कहता है तुझे प्यार नहीं है हमसे!
क्यों ये रह-रहके इशारे हैं नज़र के आगे!

कभी ख़ुशबू से ये दिल उनका भी छू लेंगे
रंग तूने जो पसारे हैं नज़र के आगे