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"साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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02:34, 10 जुलाई 2011 का अवतरण
साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
ख़ूब पर्दा है यह! जवाब नहीं
कैसे फिर से शुरू करें इसको
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं
क्यों दिए पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं
मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख्वाब नहीं
मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं