भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है  
 
कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है  
  
जो ख्याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे!
+
जो ख़याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे!
तू खुदा भले ही रहा करे, मुझे नाखुदा पे ग़रूर है  
+
तू ख़ुदा भले ही रहा करे, मुझे नाख़ुदा पे ग़रूर है  
  
 
इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलाई थी ये शमा ही क्यों!
 
इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलाई थी ये शमा ही क्यों!

02:35, 10 जुलाई 2011 का अवतरण


कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है
ये कमाल है तेरे हुस्न का, कि नज़र का मेरी फितूर है!

तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे
कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है

जो ख़याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे!
तू ख़ुदा भले ही रहा करे, मुझे नाख़ुदा पे ग़रूर है

इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलाई थी ये शमा ही क्यों!
मेरे दिल को भा गयी इसकी लौ, तो बता ये किसका क़सूर है

जिसे तूने था कभी छू दिया, वो गुलाब और गुलाब था
कहूँ अपने दिल को मगर मैं क्या, जो नशे में आज भी चूर है