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"शाम का वक्त है शाखों को हिलाता क्यों है/ कृष्ण कुमार ‘नाज़’" के अवतरणों में अंतर
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शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है | शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है | ||
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तू थके माँदे परिंदों को उड़ाता क्यों है | तू थके माँदे परिंदों को उड़ाता क्यों है | ||
स्वाद कैसा है पसीने का ये मज़दूर से पूछ | स्वाद कैसा है पसीने का ये मज़दूर से पूछ | ||
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छाँव में बैठके अंदाज़ा लगाता क्यों है | छाँव में बैठके अंदाज़ा लगाता क्यों है | ||
मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर | मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर | ||
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दोस्ती के लिये फिर हाथ बढ़ाता क्यों है | दोस्ती के लिये फिर हाथ बढ़ाता क्यों है | ||
मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार | मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार | ||
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इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है | इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है | ||
भूल मत तेरी भी औलाद बड़ी होगी कभी | भूल मत तेरी भी औलाद बड़ी होगी कभी | ||
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तू बुज़ुर्गों को खरी-खोटी सुनाता क्यों है | तू बुज़ुर्गों को खरी-खोटी सुनाता क्यों है | ||
वक़्त को कौन भला रोक सका है पगले | वक़्त को कौन भला रोक सका है पगले | ||
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सूइयाँ घडियों की तू पीछे घुमाता क्यों है | सूइयाँ घडियों की तू पीछे घुमाता क्यों है | ||
प्यार के रूप हैं सब- त्याग, तपस्या, पूजा | प्यार के रूप हैं सब- त्याग, तपस्या, पूजा | ||
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इनमें अंतर का कोई प्रश्न उठाता क्यों है | इनमें अंतर का कोई प्रश्न उठाता क्यों है | ||
जिसने तुझको कभी अपना नहीं समझा ऎ ’नाज़’ | जिसने तुझको कभी अपना नहीं समझा ऎ ’नाज़’ | ||
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हर घड़ी उसके लिये अश्क बहाता क्यों है | हर घड़ी उसके लिये अश्क बहाता क्यों है |
14:31, 10 जुलाई 2011 का अवतरण
शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है
तू थके माँदे परिंदों को उड़ाता क्यों है
स्वाद कैसा है पसीने का ये मज़दूर से पूछ
छाँव में बैठके अंदाज़ा लगाता क्यों है
मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर
दोस्ती के लिये फिर हाथ बढ़ाता क्यों है
मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है
भूल मत तेरी भी औलाद बड़ी होगी कभी
तू बुज़ुर्गों को खरी-खोटी सुनाता क्यों है
वक़्त को कौन भला रोक सका है पगले
सूइयाँ घडियों की तू पीछे घुमाता क्यों है
प्यार के रूप हैं सब- त्याग, तपस्या, पूजा
इनमें अंतर का कोई प्रश्न उठाता क्यों है
जिसने तुझको कभी अपना नहीं समझा ऎ ’नाज़’
हर घड़ी उसके लिये अश्क बहाता क्यों है