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"तरफ़दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की/ कृष्ण कुमार ‘नाज़’" के अवतरणों में अंतर
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तरफ़दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की | तरफ़दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की | ||
छतें जिनकी हिमायत चाहती हों आसमानों की | छतें जिनकी हिमायत चाहती हों आसमानों की | ||
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ये कालोनी है या बेरोज़गारों की कोई मंडी | ये कालोनी है या बेरोज़गारों की कोई मंडी | ||
जिधर देखो क़तारें ही क़तारें हैं दुकानों की | जिधर देखो क़तारें ही क़तारें हैं दुकानों की | ||
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मुरादाबाद में कारीगरी ढोता हुआ बचपन | मुरादाबाद में कारीगरी ढोता हुआ बचपन | ||
लिये फिरता है साँसों में सियाही कारख़ानों की | लिये फिरता है साँसों में सियाही कारख़ानों की | ||
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न जाने कितनी तहज़ीबें बनीं और मिट गयीं लेकिन | न जाने कितनी तहज़ीबें बनीं और मिट गयीं लेकिन | ||
मिसालें आज भी क़ायम हैं उन गुज़रे ज़मानों की | मिसालें आज भी क़ायम हैं उन गुज़रे ज़मानों की | ||
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तू जिस इंसाफ़ की देवी के आगे गिड़गिड़ाता है | तू जिस इंसाफ़ की देवी के आगे गिड़गिड़ाता है | ||
वो तुझको न्याय क्या देगी, न आँखों की, न कानों की | वो तुझको न्याय क्या देगी, न आँखों की, न कानों की | ||
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उगा है फिर नया सूरज, दिशाएँ हो गईं रोशन | उगा है फिर नया सूरज, दिशाएँ हो गईं रोशन | ||
परिन्दो! तुम भी अब तैयारियाँ कर लो उड़ानों की | परिन्दो! तुम भी अब तैयारियाँ कर लो उड़ानों की | ||
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तुम उसको बेवफ़ा ऐ ‘नाज़’ साबित कर न पाओगे | तुम उसको बेवफ़ा ऐ ‘नाज़’ साबित कर न पाओगे | ||
बड़ी लंबी-सी इक फ़हरिस्त है उस पर बहानों की | बड़ी लंबी-सी इक फ़हरिस्त है उस पर बहानों की |
21:30, 12 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
तरफ़दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की छतें जिनकी हिमायत चाहती हों आसमानों की
ये कालोनी है या बेरोज़गारों की कोई मंडी जिधर देखो क़तारें ही क़तारें हैं दुकानों की
मुरादाबाद में कारीगरी ढोता हुआ बचपन लिये फिरता है साँसों में सियाही कारख़ानों की
न जाने कितनी तहज़ीबें बनीं और मिट गयीं लेकिन मिसालें आज भी क़ायम हैं उन गुज़रे ज़मानों की
तू जिस इंसाफ़ की देवी के आगे गिड़गिड़ाता है वो तुझको न्याय क्या देगी, न आँखों की, न कानों की
उगा है फिर नया सूरज, दिशाएँ हो गईं रोशन परिन्दो! तुम भी अब तैयारियाँ कर लो उड़ानों की
तुम उसको बेवफ़ा ऐ ‘नाज़’ साबित कर न पाओगे बड़ी लंबी-सी इक फ़हरिस्त है उस पर बहानों की