भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अदाओं की तेरी जादूगरी जानी नहीं जाती / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
कि अब सूरत भी मेरी मुझसे पहचानी नहीं जाती! | कि अब सूरत भी मेरी मुझसे पहचानी नहीं जाती! | ||
− | + | मुसाफ़िर लौटकर आने का फिर वादा तो करता जा | |
− | अगर कुछ और रुक जाने की | + | अगर कुछ और रुक जाने की ज़िद मानी नहीं जाती |
ये माना तू ही परदे से इशारे मुझको करता है | ये माना तू ही परदे से इशारे मुझको करता है |
01:09, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
अदाओं की तेरी जादूगरी जानी नहीं जाती
नहीं जाती है मेरे दिल की हैरानी नहीं जाती
ये किस मंज़िल पे ले आयी है तू ऐ ज़िन्दगी मुझको
कि अब सूरत भी मेरी मुझसे पहचानी नहीं जाती!
मुसाफ़िर लौटकर आने का फिर वादा तो करता जा
अगर कुछ और रुक जाने की ज़िद मानी नहीं जाती
ये माना तू ही परदे से इशारे मुझको करता है
बिना देखे मगर दिल की परीशानी नहीं जाती
अगर है प्यार दिल में तो कभी सूरत भी दिखला दे
तेरे कूचे की मुझसे ख़ाक अब छानी नहीं जाती
कभी तड़पा ही देगी प्यार की ख़ुशबू, गुलाब! उसको
कोई भी आह तेरे दिल की बेमानी नहीं जाती