भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झलकै अति सुन्दर आनन गौर / घनानंद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} ::::'''सवैया'''<br><br> झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग ...)
(कोई अंतर नहीं)

15:24, 7 जुलाई 2007 का अवतरण

सवैया

झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै।
हँसि बोलन मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।
लट लोल कपोल कलोल करै, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।
अंग अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अवै धर च्वै।।2।।