भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है | कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है | ||
− | ये कमाल है तेरे हुस्न का, कि नज़र का मेरी | + | ये कमाल है तेरे हुस्न का, कि नज़र का मेरी फ़ितूर है! |
तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे | तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे |
01:11, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है
ये कमाल है तेरे हुस्न का, कि नज़र का मेरी फ़ितूर है!
तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे
कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है
जो ख़याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे!
तू ख़ुदा भले ही रहा करे, मुझे नाख़ुदा पे ग़रूर है
इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलाई थी ये शमा ही क्यों!
मेरे दिल को भा गयी इसकी लौ, तो बता ये किसका क़सूर है
जिसे तूने था कभी छू दिया, वो गुलाब और गुलाब था
कहूँ अपने दिल को मगर मैं क्या, जो नशे में आज भी चूर है