"तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं | मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं | ||
− | कभी तो | + | कभी तो पहुँचेंगीं तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें |
हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं | हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं | ||
बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम | बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम | ||
− | ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का | + | ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का मातम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं |
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को | जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को |
01:14, 14 जुलाई 2011 का अवतरण
तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
कभी तो पहुँचेंगीं तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें
हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का मातम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
भले ही दामन छुड़ा रही अब फिराके मुँह बेवफा जवानी
हसीन रंगों का हम वो मौसम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
कहाँ है कागज़ में रंगों-बू वह कलम की जादूगरी तुम्हारी!
गुलाब! तुमने कहा था हरदम, 'छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं'