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"यों तो ख़ुशी के दौर भी होते है कम नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान | हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान | ||
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कितना भी लोग प्यार से देखें गुलाब को | कितना भी लोग प्यार से देखें गुलाब को | ||
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01:20, 14 जुलाई 2011 का अवतरण
यों तो ख़ुशी के दौर भी होते है कम नहीं
ऐसा है कौन, दिल में, मगर, जिसके ग़म नहीं!
हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान
वरना जो सच कहें, तेरे वादों में दम नहीं
कुछ तो ज़रूर है तेरी बेगानगी का राज़
बेबस हो तू भले ही मगर बेरहम नहीं
यह साज़ बेसुरा भी ग़नीमत है दोस्तो!
कल लाख पुकारे कोई, बोलेंगे हम नहीं
कितना भी लोग प्यार से देखें गुलाब को
अब अपनी रंगों-बू का है उसको भरम नहीं