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− | |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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− | |संग्रह=आलोकवृत्त / गुलाब खंडेलवाल
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− | [[Category:कविता]]
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− | <poem>
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− | 'मन्त्र पुराने काम नं देंगें, मन्त्र नया पढ़ना है
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− | मानवता के हित मानव का रूप नया गढ़ना है
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− | सागर के उस पार शक्ति का कैसा स्रोत निहित है?
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− | ज्ञान और विज्ञान कौन वह जिससे विश्व विजित है?
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− | मुझे सिंह की गहन गुफा में घुसकर लड़ना होगा
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− | दह में धँस कर कालिय के मस्तक पर चढ़ना होगा
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− | मुक्ति नहीं, पिंजरे में पक्षी कितना भी पर मारे
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− | बिना युक्ति के राम न मिलते, कोई लाख पुकारे’
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− | मद्य-मांस-मुक्ताचारी उस भ्रष्ट देश में जाकर
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− | लौट सका है कोई अपना धर्माचरण बचाकर!
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− | यद्यपि मोहन के चरित्र में तनिक नहीं है शंका
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− | किन्तु मोहिनी मायावाली वह सोने की लंका
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− | उस काजल के घर से अमलिन कौन भला फिर आये!
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− | "मेरे भोले बालक को तो, चाहे जो, ठग जाये"
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− | जननी की आँखों को लगता पुत्र सदा बालक ही
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− | कितना भी हो जाय बड़ा, रहता है घुटनों तक ही
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− | कंस-विजय को दया यशोदा ने देवों की माना
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− | कब, रावण का जयी, राम को कौशल्या ने जाना
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− | मिल पाये कैसे माँ का आदेश विदेश-गमन को?
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− | चैन न लेने देती थी चिंता मोहन के मन को
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− | माँ का आकुल प्रेम उधर श्रृंखला-सदृश लिपटा था
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− | पंख तोलता उड़ने को नवयौवन इधर डटा था
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− | <poem>
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