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"मैं अमाँ की एक विस्तृत तान (पंचम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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02:47, 14 जुलाई 2011 का अवतरण
मैं अमाँ की एक विस्तृत तान
चंद्रिका जिसकी नहीं जिसका न स्वर्ण-विहान
दूर मुझसे सिन्धु के दो कूल
नाव-सी मँझधार में आकर गयी पथ भूल
सो चुके दृग विफल करते तीर का संधान
गीत ने गति से किया विद्रोह
राग में अब कुछ नहीं आरोह या अवरोह
तार उतरे, साज बिखरा, हुए मूर्छित गान
तिमिर भी जलता मुझे छू हाय
पवन कंपित साँस से बुझाता नखत-समुदाय
कौन ले जाए उड़ा प्रिय तक हृदय का मान
मैं अमाँ की एक विस्तृत तान
चंद्रिका जिसकी नहीं जिसका न स्वर्ण-विहान