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"वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको  
 
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मौला ये बता दे मुझे, मेरा दिल क्यूँ सुलगता है  
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मौला ये बता मुझको, क्यूँ दिल ये सुलगता है
 
सूरज में जलन है गर, क्यूँ चाँद पिघलता है  
 
सूरज में जलन है गर, क्यूँ चाँद पिघलता है  
 
साँसों के भी चलने से, लगता है बुरा हमको  
 
साँसों के भी चलने से, लगता है बुरा हमको  
 
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको  
 
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको  
  
सोचा कि मना लूँ उन्हें, मिन्नत भी कई कर लूँ  
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सोचा कि मना लूँ उन्हें, मिन्नत भी चलो कर लूँ
कदमों में गिर जाऊं, बाहों में उन्हें भर लूँ  
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मैं कदमों में गिर जाऊं, बाहों में उन्हें भर लूँ  
होगा ये नही लेकिन, आसां जो लगा हमको  
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होगा ये नही लेकिन, आसां था  लगा हमको  
 
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको  
 
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको  
  
 
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम  
 
गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम  
मर जाएँगे हम यूँ ही, अश्क़ बहाना तुम  
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मर जाएँगे हम यूँ ही, मत अश्क़ बहाना तुम  
आँसू ये तेरे अब भी, लगते हैं सज़ा हमको  
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आँसू ये तुम्हारे अब, लगते हैं सज़ा हमको  
 
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको</poem>
 
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको</poem>

10:10, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

छोटी सी भी मज़बूरी, कर देगी जुदा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको

रिश्तों की कसौटी पर, खुद को ही मिटा आए
हम चलते रहे तन्हा, थे साथ नहीं साए
अश्कों के सिवा उनसे, कुछ भी न मिला हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको

मौला ये बता मुझको, क्यूँ दिल ये सुलगता है
सूरज में जलन है गर, क्यूँ चाँद पिघलता है
साँसों के भी चलने से, लगता है बुरा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको

सोचा कि मना लूँ उन्हें, मिन्नत भी चलो कर लूँ
मैं कदमों में गिर जाऊं, बाहों में उन्हें भर लूँ
होगा ये नही लेकिन, आसां था लगा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको

गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, मत अश्क़ बहाना तुम
आँसू ये तुम्हारे अब, लगते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको