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"हिफ़ाज़त में कोई पलता हुआ नासूर लगता है / अशोक आलोक" के अवतरणों में अंतर

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हिफ़ाज़त में कोई पलता हुआ नासूर लगता है
 
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सियासत से बहुत छोटा हरेक कानून लगता है
 
सियासत से बहुत छोटा हरेक कानून लगता है
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हमें तो जश्न का मौसम बड़ा मासूम लगता है
 
हमें तो जश्न का मौसम बड़ा मासूम लगता है
 
किसी बच्चे के हाथों में भरा बैलून लगता है
 
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न जाने क्यों कभी ख़ामोशियों में दर्द चेहरे का  
 
न जाने क्यों कभी ख़ामोशियों में दर्द चेहरे का  
 
हथेली पर लिखा प्यारा कोई मज़मून लगता है
 
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हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में अमन के वास्ते लेकिन
 
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दुआ का हाथ जाने क्यों बहुत मायूस लगता है
 
दुआ का हाथ जाने क्यों बहुत मायूस लगता है
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मज़ा आता है अक्सर यूं बुझाने में चिराग़ों को  
 
मज़ा आता है अक्सर यूं बुझाने में चिराग़ों को  
 
हवा को क्या पता कितना जिगर का खून लगता है
 
हवा को क्या पता कितना जिगर का खून लगता है
 
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13:10, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

हिफ़ाज़त में कोई पलता हुआ नासूर लगता है
सियासत से बहुत छोटा हरेक कानून लगता है

हमें तो जश्न का मौसम बड़ा मासूम लगता है
किसी बच्चे के हाथों में भरा बैलून लगता है

न जाने क्यों कभी ख़ामोशियों में दर्द चेहरे का
हथेली पर लिखा प्यारा कोई मज़मून लगता है

हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में अमन के वास्ते लेकिन
दुआ का हाथ जाने क्यों बहुत मायूस लगता है

मज़ा आता है अक्सर यूं बुझाने में चिराग़ों को
हवा को क्या पता कितना जिगर का खून लगता है