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Kavita Kosh से
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हृदय में भीति सत्ता के जगी थी
कि कैसे आग पानी में लगी थी
उन्हें जब मोहिनी बस कर न पायी
नये अंदाज़ से वह मुस्कुरायी
दिये यों तो सभी सुख-साज साज़ उसने
छिपाकर रख लिया पर ताज उसने