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"क्या वो लम्हा ठहर गया होगा.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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जब वो अपने नगर गया होगा
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जब मिटा कर नगर गया होगा
लम्हा-लम्हा ठहर गया होगा  
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फिर वो लम्हा ठहर गया होगा
  
है वो हैवान, आईने  में  मगर
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है वो हैवान उसको डर कैसा
ख़ुद से मिलते ही, डर गया होगा
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खुद से मिलते ही डर गया होगा
  
तेरे कूचे से खाली हाथ लिए
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जिस सवाली के हाथ खाली थे
वो मुसाफ़िर, किधर गया होगा  
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वो सवाली किधर गया होगा
  
छाँव की चाह में वो जलता बदन
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अब न ढूंढो वो सुबह का भूला
 
शाम होते ही घर गया होगा  
 
शाम होते ही घर गया होगा  
  

19:38, 15 जुलाई 2011 का अवतरण

जब मिटा कर नगर गया होगा
फिर वो लम्हा ठहर गया होगा

है वो हैवान उसको डर कैसा
खुद से मिलते ही डर गया होगा

जिस सवाली के हाथ खाली थे
वो सवाली किधर गया होगा

अब न ढूंढो वो सुबह का भूला
शाम होते ही घर गया होगा

खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
ज़ख़्म-ए-दिल कोई भर गया होगा