भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्या वो लम्हा ठहर गया होगा.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | जब | + | जब मिटा कर नगर गया होगा |
− | + | फिर वो लम्हा ठहर गया होगा | |
− | है वो हैवान | + | है वो हैवान उसको डर कैसा |
− | + | खुद से मिलते ही डर गया होगा | |
− | + | जिस सवाली के हाथ खाली थे | |
− | वो | + | वो सवाली किधर गया होगा |
− | + | अब न ढूंढो वो सुबह का भूला | |
शाम होते ही घर गया होगा | शाम होते ही घर गया होगा | ||
19:38, 15 जुलाई 2011 का अवतरण
जब मिटा कर नगर गया होगा
फिर वो लम्हा ठहर गया होगा
है वो हैवान उसको डर कैसा
खुद से मिलते ही डर गया होगा
जिस सवाली के हाथ खाली थे
वो सवाली किधर गया होगा
अब न ढूंढो वो सुबह का भूला
शाम होते ही घर गया होगा
खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
ज़ख़्म-ए-दिल कोई भर गया होगा